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Tuesday 24 January 2017

मेडिकल स्टोर कैसे खोले??

इंडिया में फार्मेसी अथवा मेडीकल  स्टोर बिजनेस काफी तरक्की करने वाला है! क्योंकि इसमें मंदी अथवा अन्य कोई और आर्थिक घटनाओ का इसके कमाई में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि कोई व्यक्ति स्वाथ्य के साथ कोई समझौता नहीं कर सकता! चूँकि फार्मेसी बिजनेस में ज्यादा खर्च न आने  एवं इसके व्यापक मांग और कम लागत में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा को देखते हुए हम कह सकते है की आज के दौर में मेडिकल स्टोर्स की मांग ज्यादा बढ़ गयी है.

तो आईये हम जाने की मेडिकल स्टोर खोलने के लिए किन-किन प्रक्रियाओ से गुजरना पड़ता है-


  इंडिया में फार्मेसी बिजनेस या अपनी मेडिकल शॉप खोलने के लिए बिजनेस रजिस्ट्रेशन सबसे महत्वपूर्ण चरण है. इस बिजनेस के रेजिस्ट्रेशन प्रोसेस को निम्न चार भागो में बताया जा रहा है-


स्टेप १ - हॉस्पिटल फार्मेसी>

हास्पिटल pharmecy  से हमारा आशय  उस मेडिकल शॉप से है, जो किसी हास्पिटल के अंदर होती है । 
और  हॉस्पिटल के अंदर  मरीजो के लिए दवाइयों की बिक्री करता हैं। यह दवाई दूकान हॉस्पटल से अनुबंधित  है!

स्टेप २-  शहरवासी (Township) फार्मेसी>


इस चरण के अन्तर्गत वह व्यक्ति अपनी मेडिकल स्टोर्स का रजिस्ट्रेशन करता है, जो किसी  बस्ती अथवा इलाके में अपनी  मेडिकल शॉप खोलना चाहता  है। और बस्ती में निवासित लोगो का दवाइयों अथवा  स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करता है। 

स्टेप ३- चैन फार्मेसी >


इसके अन्तर्गत बड़े-बड़े उद्योग घराने देश के समस्त  क्षेत्र  अथवा अथवा कई जगहों शहरो में मेडिकल स्टोर्स की  श्रृंखला  खोली जाती है।  प्रमुख नाम है-
१ ) अप्पोलो फार्मेसी २) डॉबर फार्मेसी ३) रेड क्रॉस सोसाइटी जैसे राष्ट्रिय एवं  अंतरराष्ट्रीय  नाम शामिल है। 

स्टेप ४- stand alone pharmecy >


इस बिजनेस के अन्तर्गत ऐसे लोगो का रजिस्ट्रेशन किया जाता है, जो रिहायसी इलाको में अपनी बिजनेस खोलना चाहते है। गली मोहल्ले अथवा गांव में जो मेडिकल स्टोर्स खुले होते है, वो इसी के अन्तर्गत आता है। 

                                                  *अब आते है मुख्या बिंदुओं  पर >


TAX  REGISTRATION :  फार्मेसी के बिजनेस के लिए इंडिया के किसी भी राज्य में वैल्यू एडेड टैक्स (VALUE  ADDED  TAX ) के अन्तर्गत TAX  का रजिस्ट्रेशन करा  सकते है। चुकी VAT  टैक्स राज्य सरकार के अन्तर्गत आता है। इसलिए अपने बिजनिस का रजिस्ट्रेशन करने के लिए राज्य के VAT  अथवा इनकम टैक्स    सकता है। 

                                                 *फार्मेसी बिजनेस के लिए ड्रग  लाइसेंस> 


ड्रग लाइसेंस लेना इस बिज़नेस की सबसे  बड़ी प्रक्रिया है। और यह लाइसेंस केंद्र और राज्य  औषधि मानक नियंत्रण संग़ठन द्वारा ज़ारी किया जाता है। जारी किये जाने वाले लाइसेंस दो प्रकार के होते है-
 १) RETAIL DRUG LICENCE- दवाइयों के फूटकर विक्रेता को यह लाइसेंस जारी किया  है। 
 २) WHOLE  SALE  DRUG  LICENCE- दवाइयों के थोक विक्रेता को यह लाइसेंस जारी किया जाता है। 

योग्यता- इन लाइसेंसों के लिए योग्यता किसी मान्यता प्राप्त संसथान से फार्मेसी में डिप्लोमा अथवा डिग्री होना आवश्यक होता है। 

*लोक्रप्रिय योग्यता- वैसे तो मेडिकल स्टोर्स बिजनेस के लिए ऊपर दी  गयी योग्यता मान्य होती है, लेकिन हम यहाँ आपको बता दे की भारत में ज्यादातर मेडिकल स्टोर्स - अपने किसी परिचित, रिश्तेदार अथवा दोस्त के डिग्री को इस्तेमाल करके भी खोली जाती है/ खोल सकते है.(जिसके बदले में मामूली पैसे देकर वह अपने नाम से लाइसेंस लेकर किसी और को दे सकता है। ) 

                                                   *GUIDELINE:


*यदि कोई व्यक्ति मेडिकल शॉप खोलना चाहता हो तो, उसके पास  काम से काम १० स्क्वायर मीटर जगह होनी ही चाहिये। जबकि वह फूटकर और थोक दोनों के माध्यम से दवाइया बेचना चाहता है तो, जगह कम से कम  १५ मीटर होनी चहिये।     

*मेडिकल शॉप में एक स्टोर होना चाहिए और स्टोर में रेफ्रिजरेटर, ऐयरकंडीशन  जरूर होने चहिये। क्योंकि बहुत से दवाइया, इंजेक्शन, इन्सुलिन इत्यादि ऐसे होते है, जिनको फ्रीज में रखना अनिवार्य होता है। 

*किसी सर्टिफिकेट प्राप्त  फार्मासिस्ट के सम्मुख ही थोक में दवाइयां  बेचीं जा सकती है। अथवा कोई ऐसे अन्य ग्रेजुएट जो काम से काम एक वर्ष की दवाइयों के क्षेत्र में अनुभव प्राप्त हो। 

*फूटकर में दवाइयां बेचते समय  भी  सर्टिफाइड फार्मासिस्ट का होना जरुरी  है।  कार्य-शील घंटो में मेडिकल स्टोर्स में फार्मसिस्ट का होना जरुरी है। 

                              

                                               *ड्रग लाइसेंस के लिए आवश्यकक दस्तावेज -


*आवेदन पत्र। 
*आवेदक का नाम, पद और हस्ताक्षर किया हुआ कवर लेटर। 
*ड्रग लाइसेंस के हेतु  फीस जमा किया हुआ चालान।   
*बिजनेस प्लान की कॉपी।
*जगह का मालिकाना अधिकार का आधार।
*यदि जगह किराये से है तो स्वामित्व  का प्रमाण-पत्र। 
*रजिस्टर्ड फर्मिसिस्ट का शपथ पत्र। 
*यदि कोई फार्मासिस्ट नौकरी पर रखा गया है तो उसका नियुक्ति पत्र।

#उपाय: चुकी इंडिया में मेडिकल स्टोर्स अथवा फार्मेसी बिजनेस करने हेतु  ड्रग लाइसेंस लेने के लिए  योग्यता फार्मा से सम्बंधित डिप्लोमा अथवा डिग्री की आवश्यकता होती है. इसलिए इंडिया में लोग अपने: सगे- सम्बन्धियो, दोस्त अथवा जान-पहचान में से कोई ऐसे व्यक्ति ढूंढते है जिसने फार्मेसी से सम्बंधित शिक्षा ग्रहण  की हो. फिर उसके नाम से लाइसेंस लेकर मेडिकल स्टोर्स का सञ्चालन करते है. 

लेकिन ये तभी सही है जब आपको मेडिकल दवाइयों से सम्बंधित अच्छा खास ज्ञान हो  अथवा जरुरी  क्नॉलेज हो, लेकिन फार्मेसी में सम्बंधित  डिग्री या डिप्लोमा न होने से वह मेडिकल स्टोर का बिजनेस स्टार्ट नहो कर पा रहा हो. 
टिप १ : वैसे ये उपाय व्यावहारिक दृष्टिकोण से सही नहीं है, तो आप किसी के नाम से भी ड्रग  लाइसेंस ले परंतु आपको चाहिए  की आपको दवाइयों के बारे में जानकारी जरूर हो. 
A ) वार्ना कभी गलत  दवाइया किसी मरीज को  दिया जाये तो खतरनाक हो सकता है. 
B ) और ये निसंदेह बिजनेस के लिए हानिकारक हो सकता  है.